शकील आलम सैफी बने राष्ट्रीय पसमांदा मुस्लिम संघ के महामंत्री

 

◆ शकील आलम सैफी 2012 में उत्तर प्रदेश से एकमात्र चेहरा थे, जिन्हें विधानसभा का टिकट दिया गया था 

◆ संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सलाउद्दीन सैफी ने शकील आलम सैफी को संघ का महामंत्री बनाया 

द वीकली टाइम्स, शनिवार 8 अप्रैल 2023, नई दिल्ली। राष्ट्रीय पसमांदा मुस्लिम संघ ने शकील आलम सैफी को संघ का महामंत्री नियुक्त किया। संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सलाउद्दीन सैफी द्वारा संगठन के कार्यों को रफ्तार प्रदान करने के लिए शकील आलम सैफी को नियुक्ति किया। गौरतलब है कि पसमांदा मुसलिम संघ की स्थापना 1998 में की गई थी। यह भारत के पिछड़े और दलित मुसलमानों के कल्याण के लिए काम करने वाली एक संस्था है। शकील आलम सैफी 2012 में एकमात्र मुस्लिम चेहरा थे, जिन्हें यूपी में बीजेपी की ओर से विधानसभा का टिकट मिला था। शकील का मानना है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। एक ध्वज, एक विधान, एक संविधान पूरे देश में लागू होना चाहिए। बीजेपी के विधानसभा उम्मीदवार रहे शकील आलम सैफी ने कहा,  "आरएसएस बीजेपी का राष्ट्रवादी संगठन है, जो देश से मोहब्बत करना सिखाता है। सरकारी नौकरियों में मुसलमान डेढ़ या दो पर्सेंट है। 1400 साल पहले कुरान में सबके लिए शिक्षित होने का संदेश दिया गया था। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व की तरफदारी करना इस्लाम का विरोध नही है। उनका मानना है कि राम मंदिर पर कोर्ट का फैसला मानने के लिए हम सब उसे मानने के लिए बाध्य हैं। फैसले को न मानना कानून की अवहेलना है। वो गलत है या सही, ये तो बाद की बात है, हम उस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं, लेकिन फैसले को तो मानना ही पड़ेगा।

संघ में अपनी नियुक्ति पर शकील अहमद सैफी ने कहा कि संघ की ओर से उन्हें महामंत्री के पद से सम्मानित किया गया है। उसके लिए वह संघ के बेहद आभारी हैं। वह अपनी पूरी लगन और मेहनत से संघ के संगठन को मजबूत और प्रभावी बनाने के लिए काम करते रहेंगे। पसमांदा मूल तौर पर फारसी का शब्द है, जिसका मतलब होता है, वो लोग जो पीछे छूट गए हैं, दबाए गए या सताए हुए हैं। दरअसल भारत में पसमांदा आंदोलन 100 साल पुराना है। राष्ट्रीय पसमांदा मुस्लिम संघ के अध्यक्ष सलाउद्दीन सैफी ने कहा कि संघ के प्रति शकील आलम सैफी की निष्ठा देखकर उन्हें यह दायित्व सौंपा गया है। उन्हें विश्वास है वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबके साथ, सबका विकास सबका विश्वास और सबकी सेवा के प्रयास को साकार करेंगे। देश में मुस्लिमों की कुल आबादी के 85 फीसदी हिस्से को पसमांदा कहा जाता है। इसमें वह दलित और बैकवर्ड मुस्लिम आते हैं, जो मुस्लिम समाज में एक अलग सामाजिक लड़ाई लड़ रहे हैं और जिनके कई आंदोलन हो चुके हैं।

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