ख्यालात बिकते है…..
द वीकली टाइम्स, रविवार 26 अप्रैल 2020, नई दिल्ली।
हर लम्हा, हर पल,
नई, जदीद दुकानों में,
कीमती साज़ो-ओ-सामान की मानिंद,
शीशे के अलमियरों में सजा कर
ख्यालात बिकते रहते हैं।
रंग बिरंगे खुशबू भरे कागज़ों में लपेट कर,
कभी मजहब के लबादे में समेट कर,
झूठ और झूठ के दरमियान,
ख्यालात बिकते रहते है।
और हम...
हम जैसे जाहिल लोग,
इसे खरीदते हैं
अपनी सोचों को अपाहिज बना कर,
अपनी नज़रों का क़त्ल कर।
हम कठपुतली बन जाते है,
इन बहरूपिया ख्यालातो के,
और फिर
इन ख्यालात पे अपने नामों का मुहर लगा कर,
इतराते फिरते हैं।
ख्यालात बिकते हैं।
(अनवर नाज़िश, जमशेदपुर)